नंगे पाँव

आज बहुत दिनों बाद,

नंगे पाँव चलके देखा,

ऐसा लगा जैसे तलवों ने,

धरती को चूम लिया ,
भीगी मिट्टी पर चलने का 

एहसास ,कैसे बताऊ तुझे ,

ऐसा लगता है , जैसे 

बंजर में बारिश का पानी भरा,
चुभते कंकड़ ने एहसास कराया ,

कितने दूर हो गये धरती माँ से,

जिसने हमे जीना सिखाया ,

उससे भी इतना दूर हो गये कहाँ से,
कहाँ गया वो खुलकर बारिश में नहाना ,

और बीमार ना पड़ना,

अब तो बंद चहारदिवारी में ही,

सारी दुनिया सिमट गयी है ,
वो बचपन की यादें ,

खेतों के बिच टहलना,

मिट्टी में रमे रहना,

लेट होने पर बड़ो की,

डाँट सूनना और बहाने बनाना,
आज बच्चों को मिट्टी क्या है ,

बताना और दिखाना पड़ता है , 

उन्हे डिजीटल भाषा ही 

समझ आती है, 

कैसे होगा एहसास उन्हे,

मिट्टी की महक क्या होती है ,
आज 4K टीवी स्क्रीन पर,

बारिश की बुंदे देखने का ,

शौक हो गया,

कैसे होगा एहसास उन्हें 

उन बूँदो की ठंडक का,

एक बार नंगे पाँव,चलना तो होगा 
लाईफ पुरा पिज्जा-बर्गर हो गया

रिश्ते फेसबूक,वाट्सअप,

विचैट और ट्विटर हो गया,

ना मिलना किसी से,ना मिलाना किसी को अब तो सब कुछ आनलाईन हो गया,
एक बार नंगे पाँव खुले आसमां में,

चलके तो देखो ,

पैर के तलवों को महसूस करने दो ,

भूल जाओगे सारे गमों को यकीनन,

कभी इसे आजमां के तो देखो ,

आपका,

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